A review by puneetkusum
Dharti Dhan Na Apna by Jagdish Chandra

4.0

इस किताब को पढ़ने के विभिन्न लोगों के विभिन्न कारण हो सकते हैं लेकिन उन सब कारणों में से सबसे ज़रूरी यह है कि दलित समाज के संघर्षों को इतने पास और इतनी बारीकी से उकेरने वाली कहानी इतनी आसानी से नहीं मिलती। उपन्यास में प्रत्येक घटना इतने प्रामाणिक रूप से उस समय के सामाजिक ढांचे को प्रस्तुत करती है कि पाठक खुद को उस समाज का एक अंग महसूस करने से रोक नहीं पाता। काली की चाची की अन्धविश्वास की वजह से मृत्यु हो जाना, नन्द सिंह का बार-बार धर्म परिवर्तन, ज्ञानो और काली का प्रेम संघर्ष और उनकी दुखद परिणति, हम इन सब संघर्षों के साक्षी तो नहीं हो सकते लेकिन मानवीय स्तर पर एक दूसरे वर्ग को समझने और उनकी वेदना को अपने ह्रदय में जगह देने का एक मौका यह किताब हमें देती है।

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